रमजान अल्लाह की इबादत के साथ जिंदगी जीने की कला भी सिखाता है। आम दिनों में अपनी इच्छाओं पर कैसे काबू रखे। मन को भटकने न दे। ऐसे तमाम कामों से दूर रहे, जिनसे अल्लाह नाराज होता है। ये बातें ठाकुरगंज जामा मस्जिद के कारी मुबारक अली ने गुरुवार को कहीं। मस्जिद परिसर में धार्मिक चर्चा के दौरान उपस्थित रोजेदारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा। रमजान का पैगाम यह भी है कि हम दूसरों की दुख दूर करना सींखे। इसलिए रमजान में लोग भूखा रहते हैं। जिससे हमें उन लोगों की तकलीफ का अहसास हो जिन्हें खाना नहीं मिल पाता।
रोजा रब के लिए रखा जाता है। सो पूरी अकीदत के साथ रखा जाना चाहिए। कारी मुबारक अली के अनुसार रमजान हमें रब के अहकामात पर चलना व उसकी बंदगी करना सिखाता है। यह सिखाता है कि अल्लाह के हुक्म के आगे सिर झुकाना नत मस्तक हो जाना। इसी तरह रमजान की रातों में तरावीह की विशेष नमाज पढ़ी जाती है। यह भी खुदा के हुक्मों को बिना हील हुज्जत के मानने का ही स्वरूप है। रोजे में दिल भर के कामकाज से थके मांदे इंसान की ख्वाहिश होती है कि रात को अच्छे से आराम किया जाए लेकिन रब का हुक्म और उसके रसूल हजरत मुहम्मद का तरीका है कि रात को विशेष बंदगी की जाय।
सो तरावीर की लंबी नमाज के जरिए बंदा रब से कहता है कि मैं तेरे हुक्म को मानने वालों में से हूं। इसी तरह सहरी की बात है। इसमें सूर्योदय से कुछ पहले थोड़ा बहुत खाते हैं। सहरी के लिए फरमाया गया है कि सहरी खाया करो, इसमें बरकत है। एक तरफ दिन भर की थकान फिर रात की लंबी नामाज, उस पर अहले सुबह उठना। जाहिर ह,ै जी तो बहुत चाहता है बिस्तर बिल्कुल न छोड़े लेकिन हुक्म भी तो पूरा करना है। सो सहरी खाकर ही रोजा रखा जाता है। असल में यह सारी ट्रेनिंग है।
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