अच्छे नागरिक स्वच्छ समाज और आदर्श संस्थाओं के निर्माण के लिए नींव की तरह हैं। बहादुरगंज प्रखंड स्थित सहकारी बैंक समेसर के अध्यक्ष जब स्वयं भौतिक सत्यापन करके 6।99लाख का घोटाला पकड़कर प्रबन्धक-आडीटर सहित छह लोगों पर विजिलेंस के द्वारा प्राथमिकी दर्ज करवा सकते हैं तो अन्य सहकारी बैंकों के अध्यक्ष ऐसा क्यों नही किए या कर रहे हैं, इस पर मौन जिला प्रशासन को नए सिरे से सोचना चाहिए।
गौरतलब है कि अध्यक्ष द्वारा घोटाला को पकड़ लेने से गांव में स्थित सहकारी बैंक समेशर का टर्नओवर सात वर्ष में पांच करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया है, वहीं जिला की अन्य अधिकांश सहकारी बैंके अपनी जमा पूजी भी गवां जा चुकी हैं। सहकारी बैंक समेसर की सफलता के बावत ग्राम पंचायत राज समेसर के पूर्व मुखिया, पंचायत समिति सदस्य सह प्रखंड प्रमुख चंदना सिन्हा के प्रतिनिधि सपन सिन्हा ने बताया कि सहकारी बैंकों में जमा-निकासी और समय-समय पर आडिट का भौतिक सत्यापन बैंक या संस्था के साख को बनाने में कारगर भूमिका निभाती हैं।
इस मामले में सहकारी बैंक समेसर खरी उतरी जिसके कारण उसका टर्न ओवर आज भी साढ़े पांच करोड़ रुपए से ज्यादा है। पूर्व अध्यक्ष विद्यानंद सिंह ने भौतिक सत्यापन करके 6।99लाख्र रुपए घोटाला पकड़ा जिसमें आडिटर पर भी विजीलेंस द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। इससे पहले श्री सिंह ने बताया कि उन्होंने बतौर अध्यक्ष ंवर्ष 2002 के दौरान सहकारी बैंक समेसर से कर्ज ली गई राशि को जमा करने का निर्देश कर्जदारों को दिया और नही जमा करने पर सभी दरवाजे पर जाकर संपर्क किया। ऐसे लोगों ने बताया कि वे कर्ज लिए ही नही हैं।
उन्होंने कहा कि इसके बाद वे स्वयं रोकड़ बही और अन्य दस्तावेज की जांच करवाएं जिसमें गड़बड़ी पकड़ में आ गयी। तत्कालीन प्रबंधक द्वारा बैंकिग प्रणाली के नियमों को धता बताते हुए स्वयं जमा निकासी की गई थी जिसके आधार पर उन्होंने मुख्यमंत्री से शिकायत किया और उन्होंने मामले को विजिलेंस को सौंप दिया और विजिलेंस ने भी आरोपों को सही पाया। इस आधार पर प्रबन्धक-आडीटर सहित छह लोगों पर विजिलेंस द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गयी है। गौरतलब है कि जब एक पैक्स अध्यक्ष विद्यानंद सिंह अपने कार्यकाल में सतर्कता बरत कर सहकारिता की भावना और सहकारी बैंक को चूना लगाने वाले को पकड़ सकते हैं तो अन्य सहकारी समतियों का घोटाला क्यों नही पकड़ा जा सकता, निश्चित रुप से कहीं न कही अध्यक्ष भी जिम्मेवार या उदासीन है जिसके चलते सहकारी समितियों द्वारा संचालित 90 प्रतिशत से अधिक बैंकों का दिवालिया खिसक गया है।
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