मुंशी प्रेम चन्द्र की लोकप्रिय कहानी नमक का दारोगा की तरह चाय की खेती कर रहे किशनगंज के उद्योगपतियों व किसानों की हो गयी है। नमक का दारोगा में ईमानदार दारोगा न्यायालय में नमक के ठेकेदार से हार जाता है। वहीं किशनगंज के चाय पत्ती उत्पादक अन्य प्रदेशों में हजारों एकड़ के फार्म में चाय की खेती कर रहे उद्योग पतियों से लड़ते-लड़ते हार के कगार पर हैं। नमक का ठेकेदार दारोगा को न्यायालय में हराने के बाद उसके घर पर बग्घी से पहुंचकर,उसकी ईमानदारी की प्रशंसा उनके वृद्ध पिता से दारोगा अपने लिए मांगकर करते हैं।
वहीं किशनगंज में टुकड़ा-टुकड़ी भूमि को जोड़कर चाय की खेती से उद्योगपति बने किसानों का आंसू पोछने वाला कोई नही है। बिहार सरकार सुविधाएं देकर चाय उत्पादित अन्य राज्यों में बड़े-बड़े फामरें में खेती कर रहे व तैयार उत्पाद से जुड़े थोक मार्केट के ठेकदारों से किशनगंज के चाय पत्ती से जुड़े उद्योगपतियों को बचा सकती है। नमक का दारोगा की तरह मुकाबला किशनगंज के कृषि-उद्योग तभी कर पाएंगें,जब चाय की खेती को उद्योग का दर्जा के तर्ज पर जमीन क्रय करने की छूट व असम और पश्चिम बंगाल की तरह सरकारी अनुदान दिया जाएगा।
अन्य राज्यों की तरह किशनगंज में चाय पत्ती उत्पादन पर सुविधाएं मिले तो चाय-पत्ती आधारित टी प्रोसेसिंग प्लान्ट की संख्या पांच से बढ़कर पच्चीस हो जाएगी। पलांट की संख्या बढ़ने पर चाय की खेती कर रहे किसानों को उनके द्वारा उत्पादित चाय की पत्ती के मूल्य में भी आशातीत वृद्धि होगी। चाय की पत्ती का मूल्य अधिक मिलेगा तो चाय की खेती का क्षेत्रफल जिले में 25 हजार हेक्टेयर से कई गुना अधिक हो जाएगा।
उल्लेखनीय है अन्य प्रदेशों में हजारों एकड़ के फार्म में चाय की खेती कर रहे तथा तैयार चाय के होलसेल- ठेकेदारों का मुकाबला किशनगंज में चाय की खेती के जनक राजकरण दफ्तरी अकेले कर रहे हैं, लेकिन असम और बंगाल में चाय की खेती ऐसे उद्योगपति कर रहे हैं जिनके पास पांच सौ एकड़ से लेकर हजारों एकड़ तक का फार्म है। फार्म में ही ट्री प्रोसेसिंग प्लान्ट है जिससे चाय उत्पादन की लागत वहां पर बिहार से बहुत कम है।
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