Monday, July 27, 2009

इंग्लैण्ड की छात्रा करेंगी बिहार में चाय की खेती पर शोध

किशनगंज में चाय की खेती करके उद्योगपति बने किसान हदबंदी कानून पर सरकार के मौन के चलते अन्य प्रदेश के चाय उत्पादकों से मात खा रहे हैं ं। यह बात चाय की खेती से जुड़े और टी प्रोसेसिंग प्लांट के लिए किसानों से उसकी पत्ती क्रय कर रहे उद्योगपति राजकरण दफ्तरी ने कही। वे शुक्रवार को इग्लैंड की एक यूनिवर्सिटी से बिहार में चाय-पत्ती की खेती पर शोध करने के लिए आयी छात्रा से बातचीत कर रहे थे।

सिलीगुड़ी हवाई अड्डे पर उतरने के बाद सीधे पोठिया स्थित टी प्रोसेसिंग प्लांट पर पहुंची शोध छात्रा को उन्होंने बताया कि बिहार में चाय की खेती केवल किशनगंज में होती है। टुकड़े-टुकड़ी भूमि को जोड़कर चाय की खेती से अच्छी आय की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों की तरह सुविधाएं यहां नही हैं। भू-हदबंदी कानून लागू होने से बड़े-बड़े फामरें में चाय की खेती संभव नही है।

किशनगंज का चाय पत्ती कृषि -उद्योग अन्य प्रदेशों के चाय उत्पादकों से मुकाबल तभी कर पाएगा,जब अन्य उद्योगों के तर्ज पर चाय पत्ती की खेती के लिए जमीन क्रय करने की छूट व सरकारी अनुदान किशनगंज में भी मुहैया कराया जाएगा। चाय-पत्ती पर आधारित टी प्रोसेसिंग प्लांटों की संख्या पांच से बढ़कर पच्चीस हो जाने की संभावना जताते हुए उन्होंने कहा कि प्लांटों की संख्या बढ़ने पर चाय की खेती कर रहे किसानों को उनके द्वारा उत्पादित चाय की पत्ती के मूल्य में भी आशातीत वृद्धि होगी।

चाय की पत्ती का मूल्य बढ़ेगा तो चाय की खेती का क्षेत्रफल जिले में 25 हजार हेक्टेयर से कई गुना अधिक हो जाएगा और रोजगार के लिए पूरे प्रमंडल को नरेगा पर से निर्भरता घटेगी। उल्लेखनीय है असम और बंगाल में चाय की खेती ऐसे उद्योगपति कर रहे हैं जिनके पास पांच सौ एकड़ से लेकर हजारों एकड़ तक का फार्म है। फार्म में ही ट्री प्रोसेसिंग प्लांट है जिससे चाय उत्पादन की लागत बिहार से वहां पर बहुत कम है।

No comments:

Post a Comment