पिछले कई वर्षो की तुलना में पोठिया प्रखंड क्षेत्र के किसानों ने पाट की पैदावार में भारी पैमाने पर कमी कर दी है। वहीं प्रखंड क्षेत्र के तम्बाकू की खेती करने वाले किसान अपने खतों पर पाट आदि की खेती न कर तम्बाकू की खेती अधिक कर रहे है। इस संबंध में पाट की खेती करने वाले किसान लक्ष्मी नारायण शर्मा, मो। अब्बास, मो। नसीरुद्दीन, दामलबाड़ी के इब्राहिम, पड़लाबाड़ी से इसराइल, रायपुर से मस्तान आदि किसानों ने बताया कि पाट की खेती से किसानों को मुनाफा कम हो रहा है।
क्षेत्र में मजदूरों व उन्नत बीज का अभाव, सरकार द्वारा किसी प्रकार की सुविधा नहीं देना, पर्याप्त मात्रा में सड़नतालों का नहीं होना जैसे परेशनियों के बावजूद सही मूल्य नहीं मिलना किसानों के लिए पाट की खेती घाटे का सौदा है और क्षेत्र में वर्ष 1999 से किसान पाट की खेती करना धीरे धीरे कमी कर रहा है। इसका उदाहरण क्षेत्र के हाट बाजारों में देखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर पाट की खेती की तुलना में तम्बाकू से की जाय तो किसानों के मुताबिक इसमें वर्ष 1976-77 से गुणात्मक वृद्धि हुई है।
जानकारी के मुताबिक 1976-77 के पहले किसानों को तम्बाकू की खेती के लिए प्रत्येक किसान के लिए तम्बाकू की खेती के लिए प्रत्येक किसान के लिए मानक खेत सरकार द्वारा तय किया जाता था। इसके अलावे उत्पाद शुल्क भी किसानों को भुगतान करना पड़ता था। इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए किसान इसकी खेती में रुचि नहीं लेते थे। लेकिन इन तमाम अर्चनों को जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में आते ही समाप्त कर दिया। इतना ही नहीं किसानों को इससे मुनाफा भी अधिक होने लगा। इसका व्यापारी आज भी नेपाल, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी व कोलकाता से किसानों के घर तक आते है। यही कारण है कि किसान तम्बाकू की खेती में वृद्धि व अधिक रुचि ले रहे है।
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