मौसम के बदलते तेवर एवं सूर्य देवता के प्रचंड ताप के कारण किशनगंज में हाहाकार मचा हुआ है। किशनगंज को बिहार का चेरापुंजी का जाता है जहां अप्रैल माह से अक्टूबर माह तक प्राय: अनवरत वर्षा होती थी, वहीं किशनगंज अनावृष्टि के कारण सूखे का शिकार हो गया है। सावन के महीना में भी प्रचंड ताप है। इस संबंध में किशनगंज के मूल निवासी 70 वर्षीय मारवाड़ी कालेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं पिछले पचास वर्षो से किशनगंज में रह रहे मारवाड़ी कालेज के सेवा निवृत्त अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष 80 वर्षीय प्रो। मायाकांत झा समेत कई लोगों ने बताया कि पिछले पचास वर्षो में किशनगंज तो इस प्रकार की अनावृष्टि का शिकार हुआ था और न किशनगंज के लोगों को इस प्रकार की गर्मी एवं सूर्य के प्रचंड ताप का शिकार होना पड़ा था। उन्होंने बताया कि मौसम के बदलते तेवर ने किशनगंज का नक्शा ही बदल दिया है। उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक में किशनगंज में बड़े भारी पैमाने पर हरे-हरे वृक्ष काटे गये है, उनके कट जाने से भी किशनगंज के मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
वहीं पहाड़कट्टा निप्र के अनुसार देश का दूसरा चेरापूंजी कहे जाने वाला किशनगंज जिला के किसान आज एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहा है। जिसका पूर्व रूप से दोषी भी हम है। हमारे द्वारा अंधाधून पेड़ पौधों की कटाई करना जारी है जबकि वृक्षारोपण अभियान से हम कोसों दूर है। जिसका नतीजा आज हमारे सामने है। यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं कि हमें खाद्य संकटों से जूझना पड़ेगा। उक्त बातें एक छोटी सी मुलाकात के दौरान पशु, पक्षि विख्यात डा. डी.एन. चौधरी ने कहीं। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि अब भी समय है। इसके लिए हमें जागरूक होना और लोगों को इसके प्रति जागरूक कराना होगा। हमारे द्वारा लगभग साठ प्रतिशत जंगलों की कटाई किया जा चुका है। इसकी पूर्ति के लिए हमें बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान शुरू करना होगा।
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