Friday, August 14, 2009

पीड़ित महिला में देखती हूं अम्मी की वेदना

राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से सम्मानित राहत संस्था की संचालिका किशनगंज की जानी-मानी सामाजिक हस्तियों में सर्वाधिक चर्चित नामों एक नाम हैं। उनकी शगल में शामिल है पीड़ित महिलाओं की सेवा करना, उनकी पीड़ा का कारणों को खोजना और समाधान करना। उनकी इसी आदत ने उन्हें हेल्प लाइन महिला विकास निगम पटना द्वारा संचालित हेल्प लाइन किशनगंज का आज काउंसलर बना दिया। मात्र पौने दो वर्ष में वे दो सौ फेमली विवाद हल कर चुकी है।

किशनगंज में एक रेल गुमटी पर तैनात व नौवीं पत्नी को छोड़ने वाला एक कर्मी उनके काउंसिलिंग से संतुष्ट हो अपनी बीबी के साथ शांति से रहने को विवश है। इसी प्रकार पत्नी पर पति के अपहरण की प्राथमिकी झेल रही ननद-भौजाई को उन्होंने मिलाया, दोनो बहादुरगंज की है। उन्होंने सांस भरकर जानकारी दी कि ऐसे मामले को हल करते समय उन्हें अपनी मां की वेदना आंखों के सामने नाचने लागती है, जब अब्बा मो। रिजवान 1988 में स्वर्ग सिधार गए और अम्मी शहनाज बेगम लोक लज्जा के चलते जीविका का साधन एक मात्र दुकान भी नही चला सकी ।

वे इस पीड़ा ऐसे कहती थी कि ''मेरी उर्दू-फारसी की पढ़ाई भूखों रहकर जीवन बिताने को मजबूर कर रही है ''। श्रीमती फरजाना ने बताया कि मां की इस पीड़ा से निकालने के लिए उन्होंने दो विषय से एम.ए.किया, कानून की डिग्री प्राप्त की और पीड़ित महिलाओं की समस्याओं की हल करने का बीड़ा उठाया। इससे पहले वे नेहरु युवा केन्द्र के लिए काम करते हुए 2007 में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त की। यूनासेफ के लिए काम किया। इसी दौरान विज्ञान भवन दिल्ली में बाल एवं महिला विकास विषय पर आयोजित उनकी गोष्ठी को विशेष रुप से सराहा गया। उन्होंने जानकारी दी कि यहीं से उन्हें अपनी शक्ति का अहसास हुआ।

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