Thursday, March 19, 2009

हार-जीत का आंकड़ा कभी अप कभी डाउन

किशनगंज संसदीय क्षेत्र में हार-जीत का आंकड़ा कभी स्थाई नहीं रहा। कभी केवल ।89 फीसदी मतो से फैसला हो गया तो कभी हार-जीत का आंकड़ा 38.62 फीसदी तक पहुंच गया। 1957 में किशनगंज संसदीय इतिहास के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मो. ताहीर ने निर्दलीय बोकाई मंडल को 31284 मतों से पराजित किया था जो चुनाव में पड़े स्वीकृत मतों का 21.75 फीसदी था।
वहीं 1962 में मो। ताहीर ने पुन: भाग्य अजमा रहे बोकाई मंडल को 14555 मतों से पराजित किया था जो चुनाव में पड़े मान्य मतों का 8।04 फीसदी ही था। 1967 के संसदीय चुनाव में लखन लाल कपुर ने मो। ताहिर को 17।37 फीसदी मतों से हराया। 1971 के संसदीय चुनाव में हारजीत का आंकड़ा अब तक का सबसे बड़ा अंतर वाला रहा, जब कांग्रेस के जमीलुर रहमान ने भारतीय जनसंघ के बालकृष्ण झा को 38।62 फीसदी मतों से हराया था। 1977 के चुनाव में यह आंकड़ा 27।91 फीसदी रहा वहीं 1980 में 31।47 फीसदी।
1984 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के जमीलुर रहमान ने लोकदल के मो। मुश्ताक को 26.76 फीसदी मतों से तो 1989 के चुनाव में कांग्रेस के एम.जे. अकबर ने निर्दलीय चुनाव लड़ रहे असरारुल हक को 4.47 फीसदी मतों से पराजित किया। दसवीं लोकसभा के 1991 में हुए चुनाव में जनता दल के सैयद शहाबुद्दीन ने भाजपा के विश्वनाथ केजड़ीवाल को 15.16 फीसदी मतों से हराया था। 1996 में यह आंकड़ा थोड़ा बढ़ गया। कुल वैद्य मतदान के 24.04 फीसदी अंतर से हार-जीत हुई और जीत का सेहरा जनता दल के तस्लीमुद्दीन के सर बंधा।
वहीं 1998 के चुनाव में अब तक सबसे कम अंतर रहा। राजद के तस्लीमुद्दीन सपा के असरारुल हक को 6488 मतों से पराजित कर दिल्ली पहुंचे । इस चुनाव में 739664 लोगों ने मतदान किया था जिसमें 10533 मत रद्द किए गए थे और हारजीत का आंकड़ा ।89 फीसदी मतों के अनुसार 6488 मत था। 1999 के चुनाव में हारजीत का आंकड़ा 8648 वोट रहा वहीं रद्द मत पत्र 10204 थे। इस बार भाजपा के शहनवाज राजद के तस्लीमुद्दीन को 1.21 फीसदी मतों से हरा दिल्ली पहुंचे थे। 2004 के चुनाव में पुन: हारजीत का आंकड़ा बढ़कर 19.73 फीसदी हो गया। जिसमें राजद के तस्लीमुद्दीन ने शहनवाज को
परास्त किया था।

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