Monday, March 2, 2009

मदद ही नहीं वरदान है प्ली बार्गेनिंग समझौता : मोहित

जिला विधिक सेवा प्राधिकार के तत्वावधान में स्थानीय मंडल कारा में आयोजित एक गोष्ठी में रविवार को प्रथम श्रेणी के न्यायिक दंडाधिकारी परिमल कुमार मोहित ने कहा कि 'प्ली बार्गेनिंग' समझौता अभियुक्तों को मदद ही नहीं करता बल्कि एक वरदान साबित होगा। उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में संशोधन अधिनियम, 2005 के द्वारा प्ली बार्गेनिंग पर एक नए अध्याय 21 को शामिल किया गया है जो जेल में बंद कैदियों और पीड़ित को लंबे, महंगे एवं तमनीकी अदालती प्रक्रिया को सहे बिना जल्दी न्याय दिलवाती है।

उन्होंने कहा कि प्ली बार्गेनिंग समझौते का एक तरीका है जिसके अंतगर्त अभियुक्त कम सजा के बदले में अपने द्वारा किए गए अपराध को स्वीकार करके और पीड़ित व्यक्ति को हुए नुकसान और मुकदमे के दौरान हुए खर्चे की क्षतिपूर्ति करके कठोर सजा से बच सकता है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की सहायता करती है जो लंबे समय से जेलों में बंद है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह आपराधिक मुकदमों का कम समय में निपटारा निश्चित करती है जो कि बहुत समय से विचाराधीन है और आरोपी, पीड़ित एवं गवाहों के उत्पीड़न का कारक है।

इस प्रक्रिया में आपराधिक मुकदमों का निपटारा शीघ्रता से होता है, क्योंकि प्ली बार्गेनिंग में न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती और वह निर्णय अंतिम होता है। गोष्ठी को विद्वान अधिवक्ता इम्तियाज अली तमन्ना, मधुकर गुप्ता, अजीत दास, दीपक सहनी ने भी संबोधित किया। इस मौके पर जेलर विपिन कुमार भी मौजूद थे।

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