Monday, March 23, 2009

असफलता से शुरू होती है सफल नेताओं की यात्रा

सन 1984 में पहला चुनाव लड़ने वाले सांसद सह केन्द्रीय राज्यमंत्री तस्लीमुद्दीन को चौथा स्थान मिला था। वहीं 1991 के चुनाव में उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद सन 1996 में जनता दल के टिकट पर तीन लाख 81हजार 530 मत प्राप्त कर किशनगंज से पहली बार वे संसद भवन पहुंचे। इसके बाद 1998 में कुल मतों की संख्या में गिरावट हुई परंतु वे दो लाख 36हजार 744 मत प्राप्त करके चुनाव जीत गए। इसके बाद 2004 में किशनगंज ने फिर उनके सिर पर सांसद का ताज रखा।

हारजीत के इस इतिहास में 1990 में पहला संसदीय चुनाव लड़े सैयद शाहनवाज हुसैन उस समय तीसरे स्थान पर रहे थे परंतु 1991 में 2लाख 58हजार 035 वोट प्राप्त करके वे संसद भवन पहुंचे। इस क्रम में मौलाना असरारुल हक 1989 में निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे और दूसरे स्थान पर रहे। सन 1998 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर उन्होंने फिर चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर तथा 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस के टिकट पर लड़कर तीसरे स्थान पर रहे। इसके अलावा 1984 के चुनाव में लोकदल से पहला चुनाव लड़ने वाले मो। मुश्ताक मुन्ना 75 हजार 624 मत पाकर दूसरे स्थान पर , 1989 में जनता दल के टिकट पर तीसर तथा 1996 में निर्दलीय ही मैदान में उतरकर भी तीसरा स्थान प्राप्त किया।

दो बार भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरने वाले विश्वनाथ केजड़ीवाल ने 1991 एवं 1996 दूसरा स्थान प्राप्त किया। 2004 में बागी बनकर बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे श्री केजड़ीवाल केवल 1.87 फीसदी मतों के साथ चौथे स्थान पर रहे। सन 1984 में भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे ताराचंद धानुका को 75 हजार 241 मतों के साथ तीसरा स्थान मिला था ।

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