Tuesday, April 7, 2009

विकास की जमीनी सच बनेगी उम्मीदवारों के गले की हड्डी

किशनगंज। कागजी आकड़ों में विकास के पन्नों पर चाहे जो लिखा जाता हो मगर सरजमीनी सच कुछ और ही बयां करता है। आज भी टप्पू हाट से सतकौआ पंचायत और लौहागाड़ा पंचायत के दर्जनों गांवों को जोड़ने वाली कच्ची सड़क पर चलने से यह दुखद एहसास होता है कि विकास यात्रा के दम पर चुनावी वैतरणी पार करने की चाह रखने वाले प्रत्याशी लोगों को कितना लुभा पायेंगे। दो गिरजा से तालगाछ हटिया तक पहुंचने के लिए बैलगाड़ी या फिर ट्रैक्टर में लोग हिचखोले खाने को विवश हैं।

अर्से बाद तालगाछ टेनुआघाट में सीमेंट पुल तो बना लेकिन एक ही बरसात में एप्रोच के बह जाने से ग्रामीण फिर धोती खोल घाट पार उतरने को विवश है। वहीं लौहागाड़ी आदिवासी टोला के समीप बना पुल झूले की तरह झूल रहा है। दो वर्ष में ही सीमेंट का पुल बीच में धंस गया। लोग कहते हैं कि योजनाओं के बंटवारे व अनुशंसाओं के लिए जितनी तेजी दिखायी जाती रही है अगर वहीं तत्परता कार्य को गुणवत्ता के साथ पूर्ण कराने के प्रति जवाबदेह लोगों की होती तो क्षेत्र का रूप कुछ और ही होता।

बाढ़ व जलजमाव से बदहाल किसान सूखे चेहरे लिए रोजी-रोजगार की तलाश में भटकते रहते है। दिघलबैंक प्रखंड का पश्चिमी इलाका आज भी विकास से कोसों दूर है। वहीं बिचौलियों व विकास कार्यो को अमलीजामा देने वालों की उदासीनता का सच तालगाछ टेनुआघाट का एप्रोज और लौहागाड़ा आदिवासी टोला का झूलता पुल और दो गिरजा से तालगाछ और तालगाछ से लौहागाड़ा को जोड़ने वाली एकमात्र कच्ची सड़क सवाल उठा रहा है।

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