Monday, October 12, 2009

सन 1974: लोकनायक जय प्रकाश आए किशनगंज में

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी सन 42 की अगस्त क्रांति के अग्रदूत लोकनायक जयप्रकाश सन 1974 में किशनगंज आईबी में झंडा दिवस के अवसर पर पधारे थे। उनका व्यक्तित्व अनूठा था। उनकी सोच ही अलग थी, वे चाहते तो वे भी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रधानमंत्री अथवा केन्द्रीय मंत्रिमंडल के किसी भी प्रमुख मंत्रालय का मंत्री हो सकते थे लेकिन उन्होंने राष्ट्र की राजनीति की। स्वतंत्रता संग्राम की जिस चिंगारी को प्रज्ज्वलित किया उसका एकमात्र लक्ष्य था, राम राज्य के समान एक ऐसे राज्य की कल्पना को साकार करना जिसमें मानव दैहिक दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्त हो।

उनका एक एक वाक्य आज भी राष्ट्र के लिए प्रासंगिक है। यह मानना है एक ख्यात समाजसेवी शिक्षाविद् एवं मारवाड़ी कालेज के सेवानिवृत्त इतिहास विभाग के अध्यक्ष डा। रामनाथ सिंह का। डा। सिंह जयप्रकाश की जयंती के अवसर पर जागरण से बात कर रहे थे। उन्होंने बताया कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को अथवा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समग्र क्रांति के अग्रदूत को कभी सत्ता पाने की सीढ़ी नहीं समझा।

1974 में जब उनका किशनगंज दौरा हुआ था उस समय उन्हें उनके साथ वार्तालाप का अवसर मिला था। उन्होंने कहा कि उनका कर्म एवं लक्ष्य दोनों अनूठा था। वे राष्ट्रहित के प्रति पूर्णत: समर्पित थे। उस दौरान लोक नायक जयप्रकाश नारायण सिंह मारवाड़ी कालेज किशनगंज के एनसीसी कैडटों एवं छात्र छात्राओं ने भेंट की थी। सेना दिवस के अवसर पर एनसीसी कैडेट्स भारतीय सैनिकों के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे थे।

लोकनायक जयप्रकाश राष्ट्रीय उच्चपथ 31 पर स्थित निरीक्षण भवन में ठहरे थे। लोकनायक से भी झंडा दिवस के अवसर पर चंदा प्राप्त करने एनसीसी के कैडेट अपने एनसीसी पदाधिकारी मेजर सिन्हा के निर्देश पर पहुंचे थे। उन्होंने उन्हें झंडा दिवस के अवसर पर उनके कोट में झंडा लगाया था तथा चंदा बाक्स में उनके दान प्राप्त किया था। उन्होंने सबसे चंदा प्रदान कर सैनिकों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की थी। डा. सिंह ने कहा कि वे आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके संदेश आज भी प्रासंगिक हैं।

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