Tuesday, February 17, 2009

गरीबी-अमीरी की दूरी पाटना हमारा लक्ष्य - डीडीसी

अपने कंधों पर अपना घर-द्वार व परिवार लेकर घूमने वाले कुररियाड़ समाज को स्वरोजगार उपलब्ध कराने हेतु शुरू किये गये मधुमक्खी प्रशिक्षण से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और इससे अमीरी-गरीबी के बीच दूरियां खत्म होगी। मधुमक्खी पालन एक सार्थक स्वरोजगार है। उपरोक्त बातें सोमवार को हलीम चौक पर नाबार्ड के सहयोग से अनुसूचित जाति कल्याण संस्थान द्वारा आयोजित 15 दिवसीय मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण का उद्घाटन करते हुए डीडीसी ललन जी ने कही।

उन्होंने कहा कि ऊंच नीच की दूरियां लगभग समाप्त हो गयी है और गरीबी-अमीरी की दूरी पाटना हमारा लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि यहां स्थिर रहने वाले कुररियाड़ जाति के लोगों को सरकार की ओर से सारी सुविधाएं मुहैया करायी जायेगी। हमने अभी तक अपने दो वर्ष के कार्यकाल में एस जी एस वाई पर सबसे अधिक जोर दिया है।

प्रशिक्षण में आये प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए नाबार्ड के डीडीएम संजय मिश्रा ने कहा कि मधुमक्खी पालन में रोजगार की असीम संभावनाएं है। आज यहां से मधु दार्जिलिंग, कोलकाता व मुम्बई भेजा जाता है, इसलिए यदि यहां इसे प्रमोट किया जाय तो इससे बेरोजगारी की समस्या दूर होगी और इससे सालाना दो-ढाई लाख रूपये की आय होगी। उन्होंने कहा कि इस स्वरोजगार से जुड़कर किसान भी इसका लाभ उठा सकते है।

श्री मिश्रा ने कहा कि इसके लिए बैंक प्रबंधन ने भी वित्तीय सहायता देना का आश्वासन दिया है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष कमल राउत करोरी ने कहा कि मधुमक्खी पालन के लिए बिहार की जलवायु सबसे अच्छी है। यहां 172 किस्म के फूल मिलते है। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन के लिए 5700 रूपये के प्रोजेक्ट पर 35 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। इस व्यवसाय में पति- पत्‍‌नी दोनों को रोजगार मिलता है। यह बेरोजगारों के लिए सुनहरा अवसर है।

यहां ज्ञातव्य है कि कुररियाड़- कंजर एवं घुमन्तु - खानाबदोश जाति के लोगों का यह पुश्तैनी धंधा है। उन्होंने कहा कि वे लोग खानाबदोश की जिन्दगी जी रहे है और उनके कंधों पर ही उनका परिवार व घर- द्वार रहता है। इस मौके पर जिला पशुपालन पदाधिकारी डा. जगदीश राय,के.बी.आई.सी पटना के प्रशिक्षक बटेश्वर जी, एसबीआई के फिल्ड आफिसर जे.पी मिश्रा,किशनगंज के प्रसार पदाधिकारी सत्येन्द्र सहाय,राम नारायण सहनी आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे।

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