Tuesday, February 17, 2009

चहल्लुम पर हजरत इमाम की शहादत की याद

हजरत इमाम हुसैन की शहादत के चालीसवें दिन सोमवार को मरकजी डेहढ़ी इमाम बाड़ा कुतुबगंज हाट से एक विशाल जुलूस निकाला गया। जुलूस शहर के विभिन्न मार्गो से होते हुए ताजिया, जरई चौकी और अलम लेकर या हुसैन या अली के गगन भेदी नारों के साथ करबला पहुंचा।
जुलूस में मातमी दस्ता ब्लेड एवं जंजीर, तलवार से अपने आप को लहुलुहान करते हुए करबला जाकर अलम व ताजिया का फूल ठंडा किया। इस जुलूस में अंजुमन अब्बासिया और अंजुमन जाफरिया के हजारों लोग शामिल थे। जुलूस में दोनों अंजूमन के सचिव व अध्यक्ष साथ-साथ चल रहे थे। इस मौके पर सैयद असगर रजा वक्फ स्टेट के सचिव अथर अब्बास पि्रंस ने कहा कि मुसलमानों के आठवें इमाम हजरत अली रजा अले सलाम ने फरमाया है कि 'माह मुहर्रम जब शुरू होता है तो मेरे पिदर बुजुर्गवार (इमाम मुसी काजिम) को कभी भी हंसते हुए नहीं देखा गया।
पहले दस दिनों में आप पर सदीद गम वो अंदर वो तारी रहता और जब आसूरा का दिन नुमेदार होता तो यह दिन आप के लिए बहुत ही मुसीबत हज्न व मलाल और सदिक गिरिया के दिन होता।' इस मौके पर शिया जामा मस्जिद के पेशे इमाम सैयद सरवर इमाम कुम्मी भी मौजूद थे।

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